Today your spirit is free. Today you
must be relieved. Today you must be watching. Today you must be thinking.
Amanat, Nirbhaya, Damini…you can’t die, you are inside every woman…a part of us
(women) has died today. RIP
Saturday, December 29, 2012
RIP...the Unknown Girl
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Saturday, December 1, 2012
World AIDS Day
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Monday, November 26, 2012
बाहर तब रात थी !
बाहर तब रात थी
ऊँघती आँखों से हमने देखा था
सरसराते कानों से क्या कुछ ना सुना था
कपकपाते गले पर तो ताला ही जड़ा था
कलेजा हाथो में समेटे कितना सहा था
बाहर तब रात थी
समुन्दर भी सकुचाया था अपने आप में सिमटता
आँसू बहा रहा था
कौंधती रौशनी के बवंडर
इंसानी खून की होली का वक़्त आया था
बाहर तब रात थी
सूनी हर आँख थी
अपनों के साथ छूटे
वारिस और चिराग बुझते
असहाय, विवस सब लुटते
बाहर तब रात थी
फैलती आग की लपटों के कोहरे
मौत लायी थी तडके भी सवेरे
मानवता की पुकार
चीख रही थी हर बार
बाहर तब रात थी
उजड़ी हर शाख थी
खून के छीटों से सनी
गोलिया और धमाको से गूंजती
कोसती, गुज़रती ना भूलने वाली
मनहूस वही रात थी!
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Friday, August 10, 2012
अच्छे दिन…फिर लौटेंगे!
अच्छे दिन
मुस्कुराते दिन
खुशियों भरे दिन
फिर लौटेंगे!
उस भूले बिसरे दोस्त की सूरत में
उस भूले बिसरे दोस्त की सूरत में
जो ऐसे ही कही दुबारा टकरा जाए
और जिसे गले लगाते ही
आँखें एक बूँद छलक जाए
वही दिन…फिर लौटेंगे!
उस धूल लगी इच्छा की आहट में
उस धूल लगी इच्छा की आहट में
जो सहसा मन से कोने से निकल
सामने इठलाती दिखाई दे
और मन मदमस्त चहक जाए
सुनो, ऐसे दिन…फिर लौटेंगे!
नए मौसम के सुहाने रंगों में
नए मौसम के सुहाने रंगों में
नए आशाओं से भरे नूतन जीवन में
खुशबू बिखेरते सुनहरे फूल फिर खिलेंगे
इंतज़ार है जिसका, वैसे दिन…फिर लौटेंगे!
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My Life
Thursday, June 7, 2012
फैलता और बढ़ता - मेरा साया
चिलचिलाते सूरज की तपिश है
धूप में कसमसाती रेतीली जलन है
गहरे बरसते झरनों का खालीपन है
सालो से उजड़ी गुफाओ का सूनापन है
सदियों से चुपचाप मौन खड़े पेड़ो की विवशता है
मौसम के तपेड़े सहते टूटे पत्तो की सरसराहट है
भीड़ से बिछड़े अकेले फिरते पंछी का हृदय्भेदन क्रंदन है
तूफान बाद लोटते किनारे का तरुण स्पंदन है
बीते हुए पलों की नर्म छाँव है
आने वाले कल की फीकी आहात है
बेजान, अधरंगे सपनो का बोझ है
शब्द खोती कवितायेँ भी है
कुछ नमूने अन्तर्द्वंद के है
सूने प्रेम किस्सों का भिनभिनाता शोर है
कितना कुछ समाया है मेरे अन्दर
हर दिन फैलता और बढ़ता
एक नया, अद्बुध विशाल साया
जो मेरे वास्तविक स्वरुप को भी निगलता जा रहा है!
धूप में कसमसाती रेतीली जलन है
गहरे बरसते झरनों का खालीपन है
सालो से उजड़ी गुफाओ का सूनापन है
सदियों से चुपचाप मौन खड़े पेड़ो की विवशता है
मौसम के तपेड़े सहते टूटे पत्तो की सरसराहट है
भीड़ से बिछड़े अकेले फिरते पंछी का हृदय्भेदन क्रंदन है
तूफान बाद लोटते किनारे का तरुण स्पंदन है
बीते हुए पलों की नर्म छाँव है
आने वाले कल की फीकी आहात है
बेजान, अधरंगे सपनो का बोझ है
शब्द खोती कवितायेँ भी है
कुछ नमूने अन्तर्द्वंद के है
सूने प्रेम किस्सों का भिनभिनाता शोर है
कितना कुछ समाया है मेरे अन्दर
हर दिन फैलता और बढ़ता
एक नया, अद्बुध विशाल साया
जो मेरे वास्तविक स्वरुप को भी निगलता जा रहा है!
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Saturday, March 24, 2012
ख़ामोशी
तुम्हे याद है,
ख़ामोशी मुझे कितनी खलती थी
जिसकी आहट से ही मैं मचल उठती थी
अब देखो
कमबख्त बड़ी तस्सली से
बिखरी पड़ी है
मेरे जीवन में
अधिकार जमा लिया है इसने
मेरी सुबहो पर
ढलती शामो पर
जबसे तुम गए हो ना
हसी भी पास फटकती नहीं मेरे
अगर भूल से नजदीक आ भी गई तो
ये ज़ालिम ख़ामोशी
डंक मार कर उसको
भगा देगी
तंग आ गई हू इससे
जब तुम्हे जाना ही था तो
इसको ले क्यूँ नहीं गए साथ?
खुश तो रहती मैं
ज़िन्दगी तो जी लेती मैं
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Tuesday, February 21, 2012
क्या अर्थहीन है?
धर्म और फ़र्ज़ की जंग
तो चिर ज्ञात है
इन सबके लिए भावनाओ को कुचलना
कौन सी नई बात है
हमारा मिलना और बिछड़ना
मात्र संयोग नहीं, मरते जज़्बात है
क्या अपनी ख़ुशी का सोचना
इतनी बुरी बात है?
भूल जाओ, ना रखो याद क्यूंकि
मिलती नहीं अपनी जात है
समय बदला, लोग बदले पर
बदले नहीं अपने हालात है
निभाना है, रिसते, घिसते जाना है
आग उगलती दुनिया में आवाज़ की क्या औकात है
बिखरा मन, ख़ाली आँखें
मोहरे बने इंसान की क्या बिसात है
याद है, उस रात जब आंसू बोल रहे थे
लौट आई आज ऐसी ही रात है
यादों के जंगले घेरे खड़े है
गुज़रे लम्हे की कसक बस साथ है
भुला पाओगे? निकाल सकोगे?
भला प्यार से मीठी कौन बात है?
Thursday, January 26, 2012
बहुत दिनों बाद
बहुत दिनों से
ढूंढ़ रही थी जिसे
जो खो गया था
यही ही कही
जिसके जाने से
बेचैन रहता था मन
नींद हो गई थी
अनजान,ओझल और ग़ुम
शब्दों को पिरोया नहीं
भावो को संजोया ना सही
कल्पना के समुंदर में
गोता लगाया ही नहीं
बहुत दिनों के बाद
मौका मिला फिर एक बार
लफ़्ज़ों के मायने फिर खोज आये
कुछ कहते और कुछ सुनते जाए
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Tuesday, January 17, 2012
आसमान छूटने को है
जो चुभता है तुम्हे वो
मेरी बातों के बाण नहीं
बल्कि ना पूछे गए सवालो की टीस है
जो रुलाती है तुम्हे वो
मेरे आंसूओ की धार नहीं
बल्कि आने वाले कल की धुंधली परछाई है
जो सताती है तुम्हे वो
मेरे अनगिनत उलझे सवाल नहीं
बल्कि दम तोडती भावनाए है
जो भरमाता है तुम्हे वो
मेरा पागलपन नहीं
बल्कि तुम्हारी अपनी कमजोरी है
सिलवटे लेती ज़िन्दगी
कसमसाने लगी है
कहते थे जिसे अपना
आज वो आसमान
छूटने को है
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