चिलचिलाते सूरज की तपिश है
धूप में कसमसाती रेतीली जलन है
गहरे बरसते झरनों का खालीपन है
सालो से उजड़ी गुफाओ का सूनापन है
सदियों से चुपचाप मौन खड़े पेड़ो की विवशता है
मौसम के तपेड़े सहते टूटे पत्तो की सरसराहट है
भीड़ से बिछड़े अकेले फिरते पंछी का हृदय्भेदन क्रंदन है
तूफान बाद लोटते किनारे का तरुण स्पंदन है
बीते हुए पलों की नर्म छाँव है
आने वाले कल की फीकी आहात है
बेजान, अधरंगे सपनो का बोझ है
शब्द खोती कवितायेँ भी है
कुछ नमूने अन्तर्द्वंद के है
सूने प्रेम किस्सों का भिनभिनाता शोर है
कितना कुछ समाया है मेरे अन्दर
हर दिन फैलता और बढ़ता
एक नया, अद्बुध विशाल साया
जो मेरे वास्तविक स्वरुप को भी निगलता जा रहा है!
धूप में कसमसाती रेतीली जलन है
गहरे बरसते झरनों का खालीपन है
सालो से उजड़ी गुफाओ का सूनापन है
सदियों से चुपचाप मौन खड़े पेड़ो की विवशता है
मौसम के तपेड़े सहते टूटे पत्तो की सरसराहट है
भीड़ से बिछड़े अकेले फिरते पंछी का हृदय्भेदन क्रंदन है
तूफान बाद लोटते किनारे का तरुण स्पंदन है
बीते हुए पलों की नर्म छाँव है
आने वाले कल की फीकी आहात है
बेजान, अधरंगे सपनो का बोझ है
शब्द खोती कवितायेँ भी है
कुछ नमूने अन्तर्द्वंद के है
सूने प्रेम किस्सों का भिनभिनाता शोर है
कितना कुछ समाया है मेरे अन्दर
हर दिन फैलता और बढ़ता
एक नया, अद्बुध विशाल साया
जो मेरे वास्तविक स्वरुप को भी निगलता जा रहा है!