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Tuesday, February 21, 2012

क्या अर्थहीन है?


धर्म और फ़र्ज़ की जंग
तो चिर ज्ञात है

इन सबके लिए भावनाओ को कुचलना
कौन सी नई बात है

हमारा मिलना और बिछड़ना
मात्र संयोग नहीं, मरते जज़्बात है

क्या अपनी ख़ुशी का सोचना
इतनी बुरी बात है?

भूल जाओ, ना रखो याद क्यूंकि
मिलती नहीं अपनी जात है

समय बदला, लोग बदले पर
बदले नहीं अपने हालात है

निभाना है, रिसते, घिसते जाना है
आग उगलती दुनिया में आवाज़ की क्या औकात है

बिखरा मन, ख़ाली आँखें
मोहरे बने इंसान की क्या बिसात है

याद है, उस रात जब आंसू बोल रहे थे
लौट आई आज ऐसी ही रात है

यादों के जंगले घेरे खड़े है
गुज़रे लम्हे की कसक बस साथ है

भुला पाओगे? निकाल सकोगे?
भला प्यार से मीठी कौन बात है?